Tuesday, February 8, 2011

चिंतन

आज कि रात बड़ी दुविधा भरी कटी ! सुबह उठते ही मेरठ को रवाना होना था सो रात को ही सारी पेकिंग करनी पड़ी ! निंद्रा के स्वर्णिम दौर का मध्य में ही त्याग करना पड़ा ! घर से मेरठ के लिए बस से दो घंटे का समय लगता है और बस में सकुशल सीट मिलना उतना ही मुश्किल है जितना कि भारत में ईमानदार नेता ! मुझे लगता है सरकारी बसों का जितना बुरा हाल है उत्तरप्रदेश में है शायद ही कहीं हो, खैर इस कष्टदायक सफ़र में एक ऐसे सज्जन पुरुष से मुलाकात हुई जिनकी बातों से लगता था कि वो देश कि इस बदहाली से कुछ ज्यादा ही आहत हैं ! उनके साथ हुई इस छोटी सी मुलाकात ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया !
सफ़र के दौरान बस गंगा के पुल से गुजरती है ! गंगा का हमारे देश में एक अलग ही सम्मान है ! पुल पर पहुँचते ही कुछ यात्री 1 या २ रुपये के सिक्के निकल कर गंगा में फेंकने लगे ! उत्सुक्तावास मैंने पूछा तो सबके अपने ही कारण थे लेकिन साथ ही सभी परम्पराओं का हवाला भी दे रहे थे !1 .2 अरब आबादी वाले इस देश में हम लोग करीब 33 करोड़ देवी-देवताओं की पूजा करते हैं इस हिसाब से एक देवता के हिस्से में अमूमन 3-4 मनुष्य ही आते हैं और जब वे सिर्फ तीन मनुष्यों का ही ख्याल नहीं रख सकते तो फिर हम क्यों उनपर सबकुछ लुटाये जा रहे हैं ! अनुमान लगाया जाये हम लोग रोजाना करीब 50 -80 लाख रुपये नदियों में फेंक देते हैं, जरा सोचो अगर ये पैसा नदियों कि दशा शुधारने के लिए इस्तेमाल होता तो कैसा होता, लेकिन जहाँ भी परियोजनाओं कि बात होती है वहां भ्रष्टाचार का ख्याल पहले आ जाता है ! भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए कुछ सख्त कदम उठाये जाने कि जरुरत काफी समय से महसूस की जा रही है ! सर्वप्रथम निर्वाचन प्रक्रिया में बदलाव होना चाहिए , लोकसभा तथा विधान सभा के प्रत्याशी के लिए कम से कम स्नातक होना अनिवार्य होना चाहिए ! यह देखकर शर्मिंदगी महसूस होती है की देश के सर्वाधिक बुद्धिमान व्यक्तियों को सत्ताधारी अनपढ़ महाशयों के समक्ष जी हुजूरी करनी पड़ती है !आरक्षण की व्यवस्था भी ख़त्म होनी चाहिए क्योंकि ये भी एक तरीके देश के लिए नुकसानदेह है, इसका लाभ भी सिर्फ ताकतवर लोगों तक ही पहुँच पता है ! ख़राब छवि वाले नेताओं पर प्रतिबन्ध लगने के साथ साथ सजा का भी प्रावधान होना चाहिए लेकिन आजकल राजनीतिक दल अधिक से अधिक से बाहुबलियों को अपने पाले में रखना चाहते हैं ! वर्तमान स्तिथि को देखकर तो बस यही कहा जा सकता है ......
एक ही उल्लू काफी था बर्बाद गुलिस्ता करने को ,
हर शाख पे उल्लू बैठा है अंजाम-ऐ-गुलिस्ता क्या होगा ! 

Friday, February 4, 2011

विकास की राह पर सुस्त कदम

आजकल की इस दुनिया में लोगो के पास बिलकुल भी वक़्त नहीं है ! सब लोग हमेशा एक अजीब सी हड़बड़ी में रहते हैं और ऐसी ही स्तिथि में इंतजार करना पड़े वो भी किसी ऐसे शख्स की वजह से जो अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह करने के बजाय तुम्हें नसीहत देने लगे ! बस ऐसा ही एक वाकया हमारे साथ भी हुआ ! हुआ ये की बेरोजगारी के इस दौर में हमने भी एक पोस्ट के लिए आवेदन करने का दुस्साहस किया ! अब समझ में नहीं आता की  देश के विकास की दावेदारी करने वाली ये सरकारी संस्थाएं खुद ही विकास से क्यों मुंह मोड़े नज़र आती हैं ! अब भला ऑनलाइन आवेदन के इस दौर में डाक द्वारा आवेदन का क्या औचित्य है , जिसके सही सलामत पहुँचने की बस दुआ ही की जा सकती है ! हम भी अपने आप को इसी चूहे बिल्ली की दौड़ में शामिल करते हुए पहुँच गए डाकघर पोस्ट करने ! वहां देखा की रजिस्ट्री करने वाले माननीय ही गायब हैं ! तब समझ में आया की अगर एक जिम्मेदार व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ ले तो कितने ही लोगों की परेशानी का सबब बन जाता है ! जब महोदय से इस बाबत जानना चाहा तो पता चला की ज़नाब लंच कर रहे थे , अब कोई ये बताएगा की लंच के लिए कितना वक़्त न्यायसंगत है १५ मिनट या अधिकतम आधा घंटा , मगर लंच के नाम पर डेढ़ घंटा गायब रहना क्या किसी भी तरीके से माफ़ी के काबिल है ! काश ये सब माननीय जितना गंभीर अपने लंच टाइम के लिए रहते हैं , उतना ही अपनी जिम्मेदारियों के प्रति रहें तो शायद इस देश के विकास की गति को एक मुकाम मिल जाये !

Friday, January 7, 2011

सपने तेरे मेरे मन के

प्रश्नकाल का दौर{exam time} समाप्त होते ही ख्याल आया कि कहीं दूर घूमने निकला जाये, इन तमाम उलझनों से परे , जहाँ कोई परीक्षा  प्रणाली का रिवाज़ ही न हों, जहाँ इस बावरे से मन को कुछ शांति कि सुखद अनुभूति हों ! मगर विडंबना तो देखो परीक्षा हॉल से निकलते ही बुना गया सपना कॉलेज से रूम तक का सफ़र भी न तय कर पाया ! अब एक और exam कि तैयारी करनी थी जिसकी सफलता हमें ये गारंटी देगी कि हम अगले २ साल और exam system का अभिन्न अंग बने रहेंगे !
एक औसत अनुमान लगाया जाये तो २० वर्ष कि लघु अवधि में ही हम लगभग 800-900 exam का विशाल अनुभव प्राप्त कर चुके होते हैं ! इसी दौरान कई ऐसे मौके भी आते हैं जिनसे ये पता चलता है कि अभी कितनी क्षमता बाकी है भविष्य के लिए !
इसी दौरान कई ऐसे दुर्लभ प्राणियों से भी मुलाकात हुई जिनके पास पढने के अपने ही विशिष्ट कारण थे, कुछ सोचते हैं  कि उनकी शादी अछे ढंग से हों जाएगी, कुछ का मानना है कि ये टाइम पास का अच्छा तरीका है , लेकिन तमन्ना यही है कि बस एक बार जॉब मिल जाये , फिर जिन्दगी अपने अंदाज़ से ही जियेंगे ! असल में होता यह है कि सभी सुलझी जिन्दगी कि राह पकड़ने के चक्कर में सांसारिक भूलभुलैया में कही खो जाते हैं कुछ बचता है तो उनका tag !
अब जब ये सब देखता हूँ कि लोग दुनिया कि इस भीड़ में दौड़ लगाने को तत्पर हैं तो बस यही ख्याल आता है कि क्या ये वही जिंदगी जिसका कभी सपना देखा था, क्या exam clear करना और placement हासिल करना ही सफलता का एकमात्र पैमाना रह गया है , क्या भौतिक सुख संशाधन एकत्र करना ही सफलता का परिचायक है ?