Friday, January 7, 2011

सपने तेरे मेरे मन के

प्रश्नकाल का दौर{exam time} समाप्त होते ही ख्याल आया कि कहीं दूर घूमने निकला जाये, इन तमाम उलझनों से परे , जहाँ कोई परीक्षा  प्रणाली का रिवाज़ ही न हों, जहाँ इस बावरे से मन को कुछ शांति कि सुखद अनुभूति हों ! मगर विडंबना तो देखो परीक्षा हॉल से निकलते ही बुना गया सपना कॉलेज से रूम तक का सफ़र भी न तय कर पाया ! अब एक और exam कि तैयारी करनी थी जिसकी सफलता हमें ये गारंटी देगी कि हम अगले २ साल और exam system का अभिन्न अंग बने रहेंगे !
एक औसत अनुमान लगाया जाये तो २० वर्ष कि लघु अवधि में ही हम लगभग 800-900 exam का विशाल अनुभव प्राप्त कर चुके होते हैं ! इसी दौरान कई ऐसे मौके भी आते हैं जिनसे ये पता चलता है कि अभी कितनी क्षमता बाकी है भविष्य के लिए !
इसी दौरान कई ऐसे दुर्लभ प्राणियों से भी मुलाकात हुई जिनके पास पढने के अपने ही विशिष्ट कारण थे, कुछ सोचते हैं  कि उनकी शादी अछे ढंग से हों जाएगी, कुछ का मानना है कि ये टाइम पास का अच्छा तरीका है , लेकिन तमन्ना यही है कि बस एक बार जॉब मिल जाये , फिर जिन्दगी अपने अंदाज़ से ही जियेंगे ! असल में होता यह है कि सभी सुलझी जिन्दगी कि राह पकड़ने के चक्कर में सांसारिक भूलभुलैया में कही खो जाते हैं कुछ बचता है तो उनका tag !
अब जब ये सब देखता हूँ कि लोग दुनिया कि इस भीड़ में दौड़ लगाने को तत्पर हैं तो बस यही ख्याल आता है कि क्या ये वही जिंदगी जिसका कभी सपना देखा था, क्या exam clear करना और placement हासिल करना ही सफलता का एकमात्र पैमाना रह गया है , क्या भौतिक सुख संशाधन एकत्र करना ही सफलता का परिचायक है ?