Saturday, November 20, 2010

नवोदय स्मृति

अहो धन्य भाग हमारे , जो नवोदय में प्रवेश हुए हमारे !
वो रूम अलोटमेंट वो डबल  डेकर की खींचतान
बिखरे हुए टैलेंट को मिल गयी नयी पहचान ,
मिल गयी नयी पहचान हुए सब अपने ,
पर आँखों में थे अब भी घर के ही सपने ,
वो दिनभर मस्ती वो रातों की महफ़िल ,
झगड़ें भले, पर मिलते थे दिल ,
बहाना बीमारी का चाहें सेहत हो अच्छी,
खेलेंगे क्रिकेट पर चाहिए पी.टी. से छुट्टी,
अब याद आता है गुज़रा ज़माना ,
ठन्डे ठन्डे पानी से सुबह को नहाना ,
अब तो बची हैं बस इतनी ही दुआएं ,
वो सात साल फिर से जीने को मिल जायें !