आज कि रात बड़ी दुविधा भरी कटी ! सुबह उठते ही मेरठ को रवाना होना था सो रात को ही सारी पेकिंग करनी पड़ी ! निंद्रा के स्वर्णिम दौर का मध्य में ही त्याग करना पड़ा ! घर से मेरठ के लिए बस से दो घंटे का समय लगता है और बस में सकुशल सीट मिलना उतना ही मुश्किल है जितना कि भारत में ईमानदार नेता ! मुझे लगता है सरकारी बसों का जितना बुरा हाल है उत्तरप्रदेश में है शायद ही कहीं हो, खैर इस कष्टदायक सफ़र में एक ऐसे सज्जन पुरुष से मुलाकात हुई जिनकी बातों से लगता था कि वो देश कि इस बदहाली से कुछ ज्यादा ही आहत हैं ! उनके साथ हुई इस छोटी सी मुलाकात ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया !
सफ़र के दौरान बस गंगा के पुल से गुजरती है ! गंगा का हमारे देश में एक अलग ही सम्मान है ! पुल पर पहुँचते ही कुछ यात्री 1 या २ रुपये के सिक्के निकल कर गंगा में फेंकने लगे ! उत्सुक्तावास मैंने पूछा तो सबके अपने ही कारण थे लेकिन साथ ही सभी परम्पराओं का हवाला भी दे रहे थे !1 .2 अरब आबादी वाले इस देश में हम लोग करीब 33 करोड़ देवी-देवताओं की पूजा करते हैं इस हिसाब से एक देवता के हिस्से में अमूमन 3-4 मनुष्य ही आते हैं और जब वे सिर्फ तीन मनुष्यों का ही ख्याल नहीं रख सकते तो फिर हम क्यों उनपर सबकुछ लुटाये जा रहे हैं ! अनुमान लगाया जाये हम लोग रोजाना करीब 50 -80 लाख रुपये नदियों में फेंक देते हैं, जरा सोचो अगर ये पैसा नदियों कि दशा शुधारने के लिए इस्तेमाल होता तो कैसा होता, लेकिन जहाँ भी परियोजनाओं कि बात होती है वहां भ्रष्टाचार का ख्याल पहले आ जाता है ! भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए कुछ सख्त कदम उठाये जाने कि जरुरत काफी समय से महसूस की जा रही है ! सर्वप्रथम निर्वाचन प्रक्रिया में बदलाव होना चाहिए , लोकसभा तथा विधान सभा के प्रत्याशी के लिए कम से कम स्नातक होना अनिवार्य होना चाहिए ! यह देखकर शर्मिंदगी महसूस होती है की देश के सर्वाधिक बुद्धिमान व्यक्तियों को सत्ताधारी अनपढ़ महाशयों के समक्ष जी हुजूरी करनी पड़ती है !आरक्षण की व्यवस्था भी ख़त्म होनी चाहिए क्योंकि ये भी एक तरीके देश के लिए नुकसानदेह है, इसका लाभ भी सिर्फ ताकतवर लोगों तक ही पहुँच पता है ! ख़राब छवि वाले नेताओं पर प्रतिबन्ध लगने के साथ साथ सजा का भी प्रावधान होना चाहिए लेकिन आजकल राजनीतिक दल अधिक से अधिक से बाहुबलियों को अपने पाले में रखना चाहते हैं ! वर्तमान स्तिथि को देखकर तो बस यही कहा जा सकता है ......
एक ही उल्लू काफी था बर्बाद गुलिस्ता करने को ,
हर शाख पे उल्लू बैठा है अंजाम-ऐ-गुलिस्ता क्या होगा !
सफ़र के दौरान बस गंगा के पुल से गुजरती है ! गंगा का हमारे देश में एक अलग ही सम्मान है ! पुल पर पहुँचते ही कुछ यात्री 1 या २ रुपये के सिक्के निकल कर गंगा में फेंकने लगे ! उत्सुक्तावास मैंने पूछा तो सबके अपने ही कारण थे लेकिन साथ ही सभी परम्पराओं का हवाला भी दे रहे थे !1 .2 अरब आबादी वाले इस देश में हम लोग करीब 33 करोड़ देवी-देवताओं की पूजा करते हैं इस हिसाब से एक देवता के हिस्से में अमूमन 3-4 मनुष्य ही आते हैं और जब वे सिर्फ तीन मनुष्यों का ही ख्याल नहीं रख सकते तो फिर हम क्यों उनपर सबकुछ लुटाये जा रहे हैं ! अनुमान लगाया जाये हम लोग रोजाना करीब 50 -80 लाख रुपये नदियों में फेंक देते हैं, जरा सोचो अगर ये पैसा नदियों कि दशा शुधारने के लिए इस्तेमाल होता तो कैसा होता, लेकिन जहाँ भी परियोजनाओं कि बात होती है वहां भ्रष्टाचार का ख्याल पहले आ जाता है ! भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए कुछ सख्त कदम उठाये जाने कि जरुरत काफी समय से महसूस की जा रही है ! सर्वप्रथम निर्वाचन प्रक्रिया में बदलाव होना चाहिए , लोकसभा तथा विधान सभा के प्रत्याशी के लिए कम से कम स्नातक होना अनिवार्य होना चाहिए ! यह देखकर शर्मिंदगी महसूस होती है की देश के सर्वाधिक बुद्धिमान व्यक्तियों को सत्ताधारी अनपढ़ महाशयों के समक्ष जी हुजूरी करनी पड़ती है !आरक्षण की व्यवस्था भी ख़त्म होनी चाहिए क्योंकि ये भी एक तरीके देश के लिए नुकसानदेह है, इसका लाभ भी सिर्फ ताकतवर लोगों तक ही पहुँच पता है ! ख़राब छवि वाले नेताओं पर प्रतिबन्ध लगने के साथ साथ सजा का भी प्रावधान होना चाहिए लेकिन आजकल राजनीतिक दल अधिक से अधिक से बाहुबलियों को अपने पाले में रखना चाहते हैं ! वर्तमान स्तिथि को देखकर तो बस यही कहा जा सकता है ......
एक ही उल्लू काफी था बर्बाद गुलिस्ता करने को ,
हर शाख पे उल्लू बैठा है अंजाम-ऐ-गुलिस्ता क्या होगा !
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